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टेन ओफ स्वोर्ड्स

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व


हार, असफलता, दर्द, दर्दनाक अंत, गहरे घाव, विश्वासघात, हानि, संकट

वह एकलव्य है, जिसे भगवान कृष्ण ने मारा था। वह अर्जुन से भी बेहतर धनुर्धर था।
फिरभी उसकी हार हुई। आपको भी अपने जीवन में असफलता का मुँह देखना पड सकता है। डरने की आवश्यकता नहीं है। हार के आगे जीत होती है। आपके अपने आपको दर्द देंगे। जिसकी सजा उनको मिलेगी और उनकी प्रवृत्तियोंका दर्दनाक अंत होगा। हर एक रिलेशंनशिप आपको गहरे घाव देगी। तो ज्यादा किसी से उम्मिद ना रखिए। विश्वासघात तो आपके जीवन का एक हिस्सा बन चुका है। उसे आप नहीं टाल सकते हैं। आपके जीवन में हानि होने के चांसेस है।कोई संकट आ सकता है। लेकिन डरिए नहीं संकट की घडी आपकी परिक्षा लेगा और आप उसमें डिस्टिंक्शन से पास भी हो जाओगे। आपको अपनी क्षमताओंका पता चलेगा।

रिवर्स भविष्य कथन



साहस, कुछ ऊर्जा, अच्छा स्वास्थ्य, पुनर्प्राप्ति, उत्थान, एक अपरिहार्य अंत का विरोध

आप का समय आया है की कुछ नया साहस किया जाए। रेकी के जैसी कुछ ऊर्जा आपके अंदर से प्रवाहित हो रही है जो आपको अच्छा स्वास्थ्य देगी।जो खो गया है उसकी पुनर्प्राप्ति होगी।आपका पुररुत्थान होगा उत्थान यह एक प्रक्रिया होगी जिसमें एक अपरिहार्य अंत का विरोध होगा। सब कुछ ठीक होगा।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



एक आदमी को दस बार तलवार घोपकर मारा गया है। तलवारें शरीर में ही रखी गई है। आकाश काला है। शरीर से खून बह रहा है। वह आदमी अपने पीले ,लाल कपड़े में है। पहाड़ियाँ दूर कहीं पर हैं।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


एक आदमी को दस बार तलवार से घोंपा जाता है, जहाँ दुश्मन अपनी तलवारें भी वापस लेना नहीं चाहता।वह एकलव्य है, जिसे भगवान कृष्ण ने मारा था। वह अर्जुन से बेहतर शक्तिशाली धनुर्धर था। एकलव्य गुरु द्रोणाचार्य की मूर्ति के सामने तीरंदाजी अभ्यास के लिए प्रसिद्ध है। द्रोणाचार्य ने चालाकी से उसे अपना अंगूठा काटने को कहा। अपने पिता निषादराज की मृत्यु के बाद एकलव्य ने साम्राज्य पर अधिकार कर लिया। विश्वासघात को जानने के बाद, उसने यादवों का वंश विनाश करना शुरू कर दिया।

तब भगवान कृष्ण ने एकलव्य को अकेला बुलाकर चतुराई से उसका वध कर दिया। इस प्रकार एक भीषण लड़ाकू का अंत एकांत में हुआ।

कथा विस्तार से

व्यात्राज हरिण्यधनु और रानी सुलेखा ने आदिवासी इलाके के अवस्थित श्रृंगवेरपुर में एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम “अभिद्युम्न” -अभय- रखा गया। जब “अभय” शिक्षा के लिए गुरुकुल में गया तो अस्त्र शस्त्र विद्या में बालक की लगन और एकनिष्ठता को देखते हुए गुरू ने बालक को “एकलव्य” नाम से संबोधित किया।

एकलव्य को अपनी धनुर्विद्या से संतुष्टि न थी किंतु गुरु द्रोणाचार्य ने उसे धनुषविद्या देने से इनकार कर दिया।उसने जंगल में द्रोणाचार्य की एक मूर्ती बनायी और उन्हीं का ध्यान कर धनुर्विद्या में महारत हासिल कर ली।

एक दिन आचार्य द्रोण अपने शिष्योँ और एक कुत्ते के साथ आखेट के लिए उसी वन में पहुँच गए जहाँ एकलव्य थे। उसने ऐसे बाण चलाये की कुत्ते को जरा सी खरोंच भी नहीं आई और कुत्ते का मुँह भी बंद हो गया।

वे उस महान धुनर्धर को खोजते-खोजते एकलव्य के आश्रम पहुंचे।उन्होंने एकलव्य के गुरु के बारे में जानने की जिज्ञासा दिखाई तो एकलव्य ने उन्हें वो प्रतिमा दिखा दी। तो द्रोणाचार्य ने गुरु दक्षिणा के तहत उसका अंगुठा काटकर लिया।

बाद में एकलव्य निषाद वंश का राजा बनने के बाद जरासंध की सेना की तरफ से मथुरा पर आक्रमण कर यादव सेना का लगभग सफाया कर दिया था। यादव वंश में हाहाकर मचने के बाद जब कृष्ण ने दाहिने हाथ में महज चार अंगुलियों के सहारे धनुष बाण चलाते हुए एकलव्य को देखा तो उन्हें इस दृश्य पर विश्वास ही नहीं हुआएकलव्य अकेले ही सैकड़ों यादव वंशी योद्धाओं को रोकने में सक्षम था। इसी युद्ध में कृष्ण ने एकांत में बुलाकर एकलव्य का वध किया। उसका पुत्र केतुमान महाभारत युद्ध में भीम के हाथों मारा गया ।युद्ध के बाद कृष्ण ने अर्जुन से स्पष्ट कहा था कि “तुम्हारे प्रेम में मैंने क्या-क्या नहीं किया है। तुम संसार के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहलाओ इसके लिए मैंने द्रोणाचार्य का वध करवाया, महापराक्रमी कर्ण को कमजोर किया और न चाहते हुए भी तुम्हारी जानकारी के बिना भील पुत्र एकलव्य को वीरगति प्रदान की और इन सब के पीछे केवल एक ही वजह थी कि तुम धर्म के रास्ते पर थे। इसलिए धर्म की राह कभी मत छोड़ना’।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

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द एम्प्रेस

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द हेरोफंट

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